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समसरण में क्रियमाण पूजा का वर्णन
दोहा
छहों-खण्ड त्रय-खण्डपति भूष सु मन हरषाय। समवसरण में जायकें पूजत श्री जिनराय ॥
ऊँ ह्रीं श्रीसमवसरणस्थजिनेन्द्राः ! अत्र अवतार अवतरत संवौष्ट्। (आह्वानं)
ऊँ ह्रीं श्रीसमवसरणस्थजिनेन्द्राः ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम् ) ऊँ ह्रीं श्रीसमवसरणस्थजिनेन्द्राः ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्।
(सन्निधिकरणम्)
अष्टक (कुसुमलता छन्द)
पद्म-द्रह को नीर अनुपम कंचन-झारी में भर लाय।
श्री जिन-वर्ण चढ़ावत भविजन जन्म- जरा - दुःख दूर पलाय
तीनखण्ड छहखण्ड-भूप मिल पूजत श्री जिनवर के पाँय। ताल-मृदंग साज सब बाजत जय-जय-जय जिनवर सुखदाय ।। ॐ ह्रीं श्रीसमवसरणस्थजिनेन्द्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
केशर अरु कर्पूर मिला के रतन कटोरा में धर सार। भव-आताप-विनाशन- कारन श्री जिन वर्ण चढ़ावत गार।। तीनखण्ड छहखण्ड-भूप मिल पूजत श्री जिनवर के पाँय।
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