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तहां मुनि विहारी धरे योग भारी, सु आतम-विचारी भली-भाँति भाई। बुरे कर्म नाशी, स्व-पर-ज्ञान भासी, सु आतम-विलासी जगी ज्योति पाई।।
चले भव्य आवे भली-भाँति ध्यावे, विनय शीश नावें सुने धर्म-वानी। कोई ध्यान 'लाल' सु पूर्जे त्रिकालं, सु दीखें विशाल भली बुद्धि ठानी।।
दोहा
पंचम भूमि सुहावनी वर्णन कियो सुर धार।
धन्य सु नरभव 'लाल' जो देखत नयन निहार।। ऊँ ह्रीं पंचमभूमौ विविधरचनासंयुक्त-समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
समवसरण षष्ठभूमि पूजा प्रारम्भ
अडिल्ल छट्ठी भूमि गली की बांई ओर जू, जान दाहिनी तरफ अन्तरगलि जोर जू। दरवाजे आभ्यन्तर भाखे गायके, बनी नाट्यशाला सुन्दर सुख पायके।। ऊँ ह्रीं षष्ठभूमेः गल्यांवामदक्षिणभागे अन्तरगल्याः द्वारे नाट्यशाला-संयुक्त
समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आगे तीजो कोट भाग सै चार जू, चौथी वेदी जान भाग दो धार जू। तास बीच की भूमि चवालिस भाग जू, वलय व्यास उर आन देख दृग राज जू।।
___ऊँ ह्रीं तुर्यभाग-तृतीयसालभागद्वय-चतुर्थवेदिकामध्येचतुः चत्वारिंशद्भागवलयव्यासभूमि संयुक्त समवसरणस्थित- जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तीजो कोट विशाल वर्ण कंचन-तनो, बनो कंगूरा सहज ध्वजा लहकें बनो।
बनी बैठकें तिहरी गौख विचारिये, नाचें देवी-देव हरष उर-धारिये।। ऊँ ह्रीं विविधरचनायुक्त-तृतीयसालयुक्त-समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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