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(सुन्दरी छन्द) सरस गाथन के अनुसार जी, परम महालघु बरननकार जी। अवरजिन शासन अनुसारजे, मुनिसमूह जजों उर धार जे।।
दोहा पाटिलपुर के निकट तें, सेठ सुदर्शन सार। पायो अविचल ठाम जहँ, सुख अनन्त अविकार। ऊँ ह्रीं श्री सुदर्शनश्रेष्ठिन: निर्वाणास्पदेभ्यः पाटलिपुत्रस्थारामसिद्धक्षेत्रेभ्यः
अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
(अडिल्ल) जलगत थलगत सरित उदधिगत जानि ये। परवतगत सिद्धनि के, थोक प्रमानिये।। कुल गिरिवर गत नाम, कुधर गत जानिये। कंचनगिरि गत जे, शिवलोक विर्षे ठये।। कुन्ड-द्रहनि गत, वन उपवन गत सार ये। गिरि गर्भनतें गत भव, एक सिधारये।।
सब नरथल तें, शिवपद पायो सार जू। सिद्धसमूह चितार जजों, उर धार जू।। ऊँ ह्रीं श्रीसर्वक्षेत्रसम्बन्ध्यनेकमुनिवराणां सिद्धक्षेत्रेभ्यः पूर्णाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्री अतिशय क्षेत्र पूजा
गाथा - पासं तह अहिणंदण, णायछहि मंगलाउरे वंदे। अस्सारम्भे पट्टणि, मुणिसुव्वओ तहेव वंदामि।।
(गीतिका छन्द) श्री पार्शवनाथ जिनेश को जमि, त्योंहि अभिनन्दनहिं को। आयो समवसृत मंगलापुर, रम्यता कवि कहिय को।। तातें उभै जिन मंगलापुर, बंदि मन वचन तन तहाँ।
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