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(सुन्दरी छन्द) अब सु बंगला को वर्णन सुनो, तीन योग सुथिर करके गुनो।
चार दिश झालर शुभ जानिये, लटकते गुच्छा परमानिये।। ॐ ह्रीं तृतीयभूमौ मनोहरप्रकोष्ठसंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
रतनमाल सु मोतीमाल जू, बांध के सु झकाझक लाल जू।
बन रहीं झंझरी सुखकार जू, परम सुन्दरता तित धार जू।। ऊँ ह्रीं तृतीयभूमौ धर्मोपदेशकयतियुक्त प्रकोष्ठसंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्द्रकान्त-शिला तहं देखिये, मुनि सु ध्यान धरें तहं पेखिये
करें भव्यन को उपदेश जू, नमत आय सु देव नरेश जू।। ऊँ ह्रीं तृतीयभूमौ चन्द्रकान्तशिलोपरि-ध्यानस्थ-यतिसंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जान आभ्यन्तर बंगलाविषे, देव-विद्याधर बैठे दिखे। ___ तहं बाजत साज समाज सो, करत नृत्य सु जिन गुणगान सो॥ ॐ ह्रीं तृतीयभूमौ देवीदेवनृत्ययुक्त-प्रकोष्ठयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
देवरौंसन पर इत-उत फिरें, परम सुन्दरता तन पै धरें। सहज पुण्य सु उत्तम पायके, करत जिनदर्शन इत आयकें।। ॐ ह्रीं तृतीयभूमौ देवक्रीडायुक्तसीमासंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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