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सुभग बेलन के मण्डप तने, वृक्ष श्रेणीबद्ध खड़े घने । एक फुलवारी वर्णन कह्यो, अन्य तीनों में यों ही अह्यो। बहुत फुलवारी ऐसी सही, आसपास विदिशा में कही। अन्य पुण्य सु जिनवरदेव को, लाल जान सु कीजे सेवको ।।
ॐ ह्रीं तृतीयभूमौ अनेकरचनासंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चतुर्थ भूमि वर्णन प्रारम्भ
(अडिल्ल छन्द)
चौथी गली विशाल सु नैनन देखिये, वाम सु दक्षिण अन्तरगली सु पेखिये। तहँ दरवाजे तुंग सु सुन्दर जानिये, सुभग नाट्यशाला जु आगे मानिये। ऊँ ह्रीं चतुर्थवीथिकायां वाम-दक्षिणान्तर-वीथिकाद्वारसंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तहां नाट्यशाला सुन्दर सु विचारिये, नाचें देवी- देव हरष उर धारिये। एक नाट्यशाला में बती सु जानिये, बने अखाड़े सुभग नृत्य परमानिये। ॐ ह्रीं चतुर्थभूमौ सुभगनाट्यशालासंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
एक अखाड़े सुरीं बतीस नचें खरीं, बजें बीन मिरदगं सु थेइ-थेइ धुनि खिरी। श्री जिन के गुणसार गावतीं भाव-सों, हाव-भव बहु करें धरें पग चाव-सों॥ ॐ ह्रीं चतुर्थभूमौ द्वारे नाट्यशालासंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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