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अडिल्ल जो बाँचो यह पाठ सरस मन लायके, सुनै भव्य दे का न सु मन हरषायके। धन-धान्यादि पुत्र-पौत्र सम्पत्ति करे, नरसुर के सुखभोगि बहुरि शिवतिय वरे।।
इत्याशीर्वादः।
खातिका भूमि सम्बन्धी वर्णन
अडिल्ल दूजो गली विशाल भूमि की जानिये, वाम दाहिनी ओर अन्तरगलि मानिये। दरवाजे आभ्यन्तर भूमि सु दसरी, नाम ‘खातिका' जानि स्वच्छ जल-सों भरी॥ ॐ ह्रीं मार्गे वामदक्षिणापाश्वे अन्तर्गलिमध्ये द्वितीयखातिकाभूमि-संयुक्तसमवशरणस्थित
जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तासु वलय अरु व्यास भाग बाईस जू, भाषो श्री सर्वज्ञ परम जगदीश जू। खाई रतनन जडित शिवानन करि रली, शोभा सहज बखान कहे कवि को बली।। ऊँ ह्रीं द्वाविंशतिभागवलय-व्याससंयुक्त-द्वितीयखातिकाभूमिरत्नसोपान-संयुक्तसमवशरणस्थित
जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
पहलो दूजी वेदी बीच सु जानिये, भरी खातिका उज्ज्वल जल परमानिये। तिन दोऊ वेदिन की परिधि-विषे लहे, शोभा बहुत विशाल सु दरवाजे कहे।। ऊँ ह्रीं प्रथमद्वितीयपरिधो अनेकलघुद्वारसंयुक्तसमवशरणस्थित जिनेन्द्राय
अयं निर्वपामीति स्वाहा।
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