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लघु द्वारे बहु शोर्भे सुन्दर सार जू, छोटी-मोटी गुमठीं ऊपर धार जू।
तिन पर कलश शोभें परम विशाल जू, तिन पर लहकें ध्वजा कहें कवि 'लाल' जू|| ऊँ ह्रीं सकल-शतक्षुद्रगुमठी- संयुक्तसमवशरणस्थित जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
(सुन्दरी छन्द)
लघु सु दरवाजे आगे कही, खातिका ऊपर पुल है सही।
सहज शोभा सो पुल देत है, रतनजड़ित सु उज्जवल खेत है।।
ॐ ह्रीं लघुद्वारागेरत्नखचित-सेतुयुक्त-खातिकासंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(अडिल्ल छन्द)
चैत्य सु मन्दिर भूमि गगन तातें लहें, भूमि खातिका-विषें जाय आयो चहैं। ता वेदी के द्वारन में ह्वैकें कही, पुल के ऊपर जाय परमसुख सों सही।
सोरठा
वेदी कोट-मँझार द्वार बने लघु बहुत हैं । तिन द्वारन हैं जाँय गन्धकुटी-लग देव नर।। ऊँ ह्रीं चैत्यभूमेः अग्रेवेदिकालघुद्वारसेतुमार्गेभ्यः गन्धकुट्याः भूमिपर्यन्त-सुगममार्गसंयुक्तसमवशरणस्थित जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अडिल्ल
दूजी वेदी दरवाजे में जानिये, निकसें सो नर देव 'परमसुख मानिये।
ऐसे सो अन्तर गलियन में होयकें, चले जाँय सो गन्धकुटी लगि जायकें ॥
ऊँ ह्रीं द्वितीयवेदिकाद्वारमध्यतः गन्धकुटीपर्यन्त-सुमगमामर्गसंयुक्त-समवशरणस्थित जिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।
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