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कमल-केतकी पुष्प गुलाब सु लाइये। धारि प्रभू के आगे अतिसुख पाइये।। चौबीसों जिनदेव जजों मन लायके। हरष हिये में धार सु जिनगुण गायके।।
ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
गोझा-फेनि-सोहाल-पुवा-पापर खरे। देखत क्षुधा विलाय सु जिन-आगे धरे।। चौबीसों जिनदेव जजों मन लायके। हरष हिये में धार सु जिनगुण गायके।।
ॐ ह्रीं श्री चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मणिमय दीप अमोल सु जगमग जोति है। श्री जिन-सनमुखधारि सुज्ञान उद्योत है।। चौबीसों जिनदेव जजों मन लायके। हरष हिये में धार सु जिनगुण गायके।।
ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कृष्णागरु वर धूप दशांगी खेइये। अष्ट-करम भग जाँहि स जिन-पद सेइये।। चौबीसों जिनदेव जजों मन लायके। हरष हिये में धार सु जिनगुण गायके।।
__ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल-दाख-बदाम सु पिस्ता लायके। जिनवर-चरण चढ़ाय सु शिवफल पायके।। चौबीसों जिनदेव जजों मन लायके। हरष हिये में धार सु जिनगुण गायके।।
ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल-फल वसुविध द्रव्य सु सुन्दरी लायके। नाचें गाय बजाय सु अध्य चढ़ायके।। चौबीसों जिनदेव जजों मन लायके। हरष हिये में धार सु जिनगुण गायके।।
ऊँ ह्रीं श्री चतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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