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भ्रमरसाढ़छठी अति पावनों, विमल सिद्ध भये मन भावनों।
गिरसमेद हरी तित पूजिया, हम जज इत हर्ष धरै हिया।। ऊँ ह्रीं आषाढकृष्णा-षष्ठयां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।57
जयमाला दोहा गहन चहत उड़गन गगन, छिति-तिथि के छहँ जेम। तिमि गुन-वरनन वरननम, माँहि होय तव केम।।1।
साठ धनुष तन तुंग है, हेम वरन अभिराम। वह वराह पद-अंक लखि, पुनि पुनि करों प्रणाम।।2।।
छन्द-तोटक जय केवलब्रह्म अनन्तगुनी, तुम ध्यावत शेष महेश मुनी। परमातम पूरन पाप हनी, चित-चिंतत-दायक इष्ट धनी।।3।।
भव-आतप-ध्वंसन इन्दु-करं, वर सार रसायन शर्मभरं। सब जन्म-जरा-मृत-दाहहरं, शरनागत-पालन नाथ वरं।।4।। नित सन्त तुम्हें इन नामनि-तें, चित-चिन्तत हैं गुनगामनि-तैं। अमलं अचलं अटलं अतुलं, अरलं अछलं अथलं अकुल।।5।।
अजरं अमरं अहरं अडरं, अपरं अभरं अशरं अनरं। अमलीन अछीन अरीन हने, अमतं अगतं अरतं अघने।।6।। अछुधा अतृषा अभयातम हो, अमदा अगदा अवदातम हो। अविरुद्ध अक्रुद्ध अमानधुना, अतलं असलं अनअन्त-गुना।।7।
अरसं सरसं अकलं सकलं, अवचं सवचं अमचं सबलं। इन आदि अनेक प्रकार सही, तुमको जिन सन्त जपें नित ही।8।
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