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पंचकल्याणक
(छन्द द्रुतविलम्बित तथा सुन्दरी)
गरभ जेठ बदी दशमी भनों, परम पावन सो दिन शोभनों । करत सेव सची जननी - तणी, हम जजें पदपद्म शिरोमणी ॥ ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णा-दशम्यां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 1 ।
शुकलमाघ तुरी तिथि जानिये, जनम-मंगल तादिन मानिये। हरि तबै गिरिराज विषै जजे, हम समर्चत आनन्दको सजे ॥ ऊँ ह्रीं माघशुक्ला - चतुर्थ्या जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 2।
तप धरे सितमाघ तुरी भली, निज सुधातम ध्यावत हैं रली । हरि फनेश नरेश जजें तहाँ, हम जजें नित आनन्दसों इहाँ।। ऊँ ह्रीं माघशुक्ला - चतुर्थ्या निष्क्रमणमहोत्सव मंडिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 3।
विमल माघछठी हनि घातिया, विमलबोध लयो सब भासिया। विमल अर्घं चढ़ाय जजों अबै, विमल - आनन्द देहु, हमें सबै।। ॐ ह्रीं माघशुक्ला - षष्ठ्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।4।
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