________________
नव्यगव्य रसपूर, सुवरण-थाल भरायके।
क्षुधावेदनी चूर, जजों विमलपद विमलगुन।। ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
मणिक-दीप अखण्ड, गो छाई वर गो दशों।
हरो मोहतम-चंड, विमल विमलमति के धनी।। ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6।
अगुरु तगर घनसार, देवदारु कर चूर वर।
खेवों वसु अरि जार, विमल विमल-पदपद्म ढिग।। ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7।
श्रीफल मेव अनार, मधुर रसीले पावने।
जजों विमलपद सार, विघ्न हरें शिवफलकरें। ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
आठों दरब संवार, मन-सुखदायक पावने।
जजों अरघ भरथार, विमल विमल शिवतिय रमण।। ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
1121