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श्री विमलनाथजिन-पूजा
छंद
सहस्रार-दिवि त्यागि, नगर-कम्पिला जनम लिय। कृतधर्मानृप-नन्द, मातु-जयसेना धर्मप्रिय।। तीन लोक वर-नन्द, विमलजिन विमल विमलकर। थापों चरनसरोज, जजनके हेतु भावधर।।
ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्)
__ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
अष्टक (सोरठा) कंचनझारी धारि, पद्मद्रह को नीर ले।
तृषारोग निरवारि, विमल विमलगुन पूजिये।। ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
मलयागर करपूर देववल्लभा संग घसि।
हरि मिथ्यातम-भूर, विमल विमलगुन जजतु हों।। ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
वासमती सुखदास, स्वेत निशापतिको हँसै।
पूरे वांछित आस, विमल विमलगुन जजतु हो।। ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।3।
पारिजात मंदार, संतानक सुरतरु-जनित।
जजों सुमन भरि थार, विमल विमल गुन मदनहर।। ऊँ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4)
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