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जिनागमज्ञान रु संजम भाव, सबै निजज्ञान विना विरसाव। सुदुर्लभ द्रव्य सुक्षेत्र सुकाल, सुभाव सबे जिहतें शिवहाल।10। लयो सब जोग सुपुन्य-वशाय, कहो किमि दीजिय ताहि गँवाय। विचारत यों लौकान्तिक आय, नमें पद-पंकज पुष्प चढ़ाय।11। कह्यो प्रभु धन्य कियो सुविचार, प्रबोधि सु येम कियो जु विहार। तबै सौधर्मतनों हरि आय, रच्यो शिविका चढि आय जिनाय।12।
धरे तप पाय सु केवलबोध, दियो उपदेश सुभव्य संबोध। लियो फिर मोक्ष महासुख-राश, नमै नित भक्त सोई सुखआश।13।
धत्तानंद नित वासव-वंदत, पापनिकंदत, वासुपूज्य व्रत ब्रह्मपती। भवसंकल-खंडित, आनंद-मंडित, जै जै जै जैवंत जती।14। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायं निर्वपामीति स्वाहा।
सोरठा छंद वासुपूज्य पद सार, जजों दरबविधि भावसों। सो पावै सुखसार, भुक्ति मुक्तको जो परम।।
इत्याशीर्वादः, पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
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