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जयमाला (दोहा) सुमति तीन सौ छत्तीसों, सुमति-भेद दरसाय। सुमति देहु विनती करों, सुमति विलम्ब कराय।। दयाबेलि तहँ सुगुन-निधि, भविकमोद-गण-चंद। सुमति-सतापति
सुनतिकों, ध्यावों धरि आनंद।
पंच-परावरतन-हरन, पंच-सुमति सित देन। पंच-लब्धिदातार के, गुन गाऊँ दिनरैन।।
(छन्द भुजंगप्रयात) पिता मेघराजा सबै सिद्ध काजा, जपै नाम जाकौ सबै दुःख भाजा।
महासूर इक्ष्वाकु वंशी विराजै, गुण-ग्राम जाको सबै ठौर छाज।। तिन्हों के महापुण्यसों आप जाये, तिहुँ लोक में जीव आनंद पाये। सुनासीर ताही धरी मेरु धायो, क्रिया जन्म की सर्व कीनी यथा यो।। बहुरि तात को सौंपि संगीत कीनों, नमें हाथ जोरें भलो भक्ति भीनों। बिताई दशै लाख ही पूर्व बालै, प्रजा लाख उन्तीस ही पूर्व पालै।। ___ कछु हेतु” भावना बार भाये, तहां ब्रह्म लौकांत के देव आये। गये बोधि ताही समै इन्द्र आयो, धरे पालकी में सु उद्यान ल्यायो।। नमैं सिद्ध को केशलोंचे सबै ही, धर्यो ध्यान शुद्ध जु घाती हने ही। लह्यो केवलं औ समोसण साजं, गणाधीश जू एकसौ सोल राज।। खिरै शब्द तामैं छहों द्रव्य धारें, गुनौ पर्जय उत्पाद व्यय ध्रौव्य सारे। तथा कर्म आठों तनी थित्ति गाजं, मिलै जासु के नाशते मोच्छराज।।
धरै मोहिनी सत्तरं कोड़कोड़ी, सरित्पत्प्रमाणं थिति दीर्घ जोड़ी। अवधिज्ञान दृग्वेदनी अंतरायं, धरै तीस कोड़ाकोड़ी सिंधुकायं।।
तथा नामगोतं कुड़ाकोड़ि बीसं, समुद्रप्रमाणं धरै सत्तईसं। सु तैंतीस अब्धि धरे आयु अब्धि, कहे सर्व कर्मोतनी वृद्ध लब्धि।।
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