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अष्टक (छंद त्रिभंगी अनुप्रासक)
गंगाहृद-पानी निर्मल आनी, सौरभ सानी शीतानी। तसु ढारत धारा तृषा-निवारा, शांतागारा सुखदानी॥ श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजौं ख्याता जग्गेशं॥
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु - विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
शुचि चंदन - बावन ताप - मिटावन, सौरभ-पावन घसि ल्यायो।
तुम भव-तप-भंजन हो शिवरंजन, पूजन-रंजन मैं आयो
श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं।
ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय भवताप - विनाशाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा॥
सित खंड-विवर्जित निशिपति - तर्जित, पुंज - विधर्जित तंदुल को । भव-भाव-निखर्जित शिवपद-सर्जित, आनंदभर्जित दंदल को ।
श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनत्राता, पूजौं ख्याता जग्गेशं॥
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा॥
मनमथ-मद-मंथन धीरज - ग्रंथन, ग्रंथ - निग्रंथन ग्रंथपति ।
तुव पाद-कुशेसे आदि-कुशेसे, धारि अशेसे अर्चयती॥
श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं॥
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय कामबाण - विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।
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