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आकुल कुलवारन थिरताकारन, क्षुधाविदारन चरु लायो। षटरस कर भीने अन्न नवीने, पूजन की सुख पायो॥ श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं॥
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा॥
दीपक-मणि-माला जोत उजाला, भरि कनथाला हाथ लिया। तुम भ्रमतम-हारी शिवसुख-कारी, केवलधारी पूज किया।
श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं॥
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥
अगरादिक चूरं परिमल पूरं, खेवत क्रूर कर्म जरें ।
दशहूँ दिश धावत हर्ष बढ़ावत, अलि गुण-गावत नृत्य करें।
श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं॥
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा॥
बादाम नारंगी श्रीफल चंगी, आदि अभंगी सों अरवौं। सब विघनविनाशै सुख प्रकाशै, आतम-भासै भौ विरचौं। श्री अजित-जिनेशं नुत-नाकेशं, चक्रधरेशं खग्गेशं। मनवाँछितदाता त्रिभुवनदाता, पूजौं ख्याता जग्गेशं॥
ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा॥
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