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भयो जब केवलज्ञान जिनेन्द्र, समोसृत-ठाठ रच्यो सु धनेंद्र ।। 11॥ तहाँ वृष-तत्त्व प्रकाशि अशेष, कियो फिर निर्भय-थान प्रवेश। अनंत-गुनातम श्री सुखराश, तुमैं नित भव्य नमैं शिव- आश।।12।।
(छन्द घत्तानंद)
यह अरज हमारी सुन त्रिपुरारी, जन्म-जरा-मृती दूर करो। शिव-संपति दीजे ढील न कीजे, निज, लख लीजे कृपा धरों ॥ 13 ॥ ॐ श्री आदिनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(छन्द आर्या)
जो ऋषभेश्वर पूजे, मन-वच-तन भाव शुद्ध कर प्रानी। सो पावै निश्चैसों, मुक्ति औं मुक्ति सार सुख थानी || 14
इत्याशीर्वादः! पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
श्री अजितनाथ जिनपूजा
(छन्द- अशोकपुष्पमंजरी दंडक, अर्धमंजरी तथा अर्द्धनाराज) त्याग वैजयन्त सार, सार धर्म के अधार। जन्म-धार धीर नम्र, सुष्टु कौशलापुरी ॥ अष्ट दुष्ट नष्टकार, मातु वैजयाकुमार। आयु पूर्व लक्षदत्त है बहत्तरै पुरी ॥ ते जिनेश श्री महेश, शत्रु के निकंददेश । अत्र हेरिये सुदृष्टि, भक्त पै कृपा पुरी॥ आय तिष्ठ इष्टदेव, मैं करों पदाब्जसेव । परम शर्मदाय पाय, आय शर्न आपुरी ॥ ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् (आह्वाननम् )। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः (संस्थापनम् )। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् (सन्निधिकरणम्) ।
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