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जयमाला (छन्द घत्तानंद)
जय जय जिनचंदा, आदि - जिनंदा, हनि भवफंदा कंदा जू। वासव-शत-वंदा धरि आनंदा, ज्ञान- अमंदा नंदा जू।। 1॥
छन्द मोतियदाम
त्रिलोक-हितंकर पूरन पर्म, प्रजापति विष्णु चिदातम धर्म जतीसुर ब्रह्मविदांबर बुद्ध, वृषंक अशंक क्रियाम्बुधि शुद्ध || 2 || जबै गर्भागम मंगल जान, तबै हरि हर्ष हिये अति आन। पिता - जननी पद- सेव करेय, अनेक प्रकार उमंग भरेय ॥ 3 ॥ जन्मे जब ही तब ही हरि आय, गिरीन्द्र विषै किय न्हीन सुजाय । नियोग समस्त किये तित सार, सु लाय प्रभू पुनिप राज-अगार॥4॥
पिता कर सौंपि कियो तित नाट, अमंद अनंद समेत विराट । सुथान पयान कियो फिर इंद्र, जहाँ सुर सेव करें जिनचंद ।।5। कियो चिरकाल सुखाश्रित राज, प्रजा सब आनंद को तित साज। सुलिप्त सुभोगिनि में लखि जोग, कियो हरि ने यह उत्तम योग ||6|| निलांजन-नाच रच्यो तुम पास, नवों रस- पूरित भाव - विलास। बजै मिरदंग दृमा दृम जोर, चले पग झारि झनांझन जोर ॥7॥ घनाघन घंट करे धुनि मिष्ट, बजैं मुहचंग सुरान्वित पुष्ट। खड़ी छिन पास छिनहि आकाश, लघु छिन दीरघ आदि विलास॥8॥ ततच्छन ताहि विलै अविलोय, भये भवतैं भवभीत बहो । सुभावत भावन बारह भाय, तहाँ दिव-ब्रह्म- ऋषीश्वर आय॥9॥ प्रबोध प्रभू सु गये निज-धाम, तबे हरि आय रचि शिवकाम। कियो कचलौंच प्रयाग-अरण्य, चतुर्थम ज्ञान लह्यो जग-धन्य॥10॥ धर्या तब योग छहमास-प्रमान, दियो श्रेयांस तिन्हें इख-दान।
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