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तब सुन्दर सुभग ललाम देह, सम चतुर धरे संस्थान एह। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।2।।
तब दर्शन करते भव्य जीव, वह लहत अनन्ता सुख सदीव। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्यकृत्रिम दोय रूप।।3।।
जय दोषों से हो रहित आप, हम करते प्रभु तुम नित्य जाप। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।4।।
जय पर्यंकासन ध्यान रूप, जय खड्गासन हो प्रभु अनूप। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।5।। जय अविचल गुण के हैं न पार, भवि जीवदर्शसम्यक्त्व धार। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।6।। जय भव्य कमल विकसित दिनेश, जय नरपति सुरपति नुत खगेश। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।7।
नासाग्रदृष्टिरत सकल धार, भवि जीव नमे तुम बार बार। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।8।
जय स्वर्ण रत्न निर्मित महान, जय उपल बनी सुन्दर सुजान। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।9। जय अधोमध्य अरु ऊर्ध्व लोक, जय कृत्या कृत्रिम बिम्ब थोक। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।10॥
जिन चैत्य नमुं मैं बार बार, सूरजमल को प्रभु तार-तार। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।11।। जय जय जिन प्रतिमा होय, अकृतिमा कृतिमा प्रतिमा ध्यावत है।
घत्ता- जय पूज रचावे शीष नवावे, शिव सुन्दर का पावत है। ॐ ह्रीं त्रैलोक्य सम्बन्धि कृत्रिमाकृत्रिमसंख्य जिन जिन चैत्य समूहेभ्योध्यं। तीन लोक में बिम्ब है कृत्याकृत्रिम सार। पूजो मन वच काय से होवें भव दधि पार।।
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