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होय मध्यम लोक में जो जैन बिम्ब सुहावने। है वने अरु जो अनादि मन सभी के भावने।। त्रैकाल में मन वचन तन से में नमू नित चरण में।
वस द्रव्य उत्तम अध्य पूजं, होऊं उनकी शरण में।। ऊँ ह्रीं श्री मध्यलोक सम्बन्धि कृत्रिमाकृत्रिमसंख्या जिनचैत्यभ्यो
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।2।
लोक ऊपर में बने हैं बिम्ब जिन सुखदाय हैं। है अकृत्रिम मन हरे अरु पाप सब नश जाय है।। त्रैकाल में मन वचन तन से में नमू नित चरण में।
वसु द्रव्य उत्तम अध्य पूजू, होऊं उनकी शरण में।। ऊँ ह्रीं श्री उर्ध्वलोक सम्बन्धि असंख्य जिन चैत्यभ्यो अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।3।
लोक तीनों में मनोहर बिम्ब अति सुखदाय हैं। वसु कोटि छप्पन लक्ष मत नवसहस मन हर्षाय है।। अरु चार शत इक बीस प्रतिमा है अनादि काल से।
जो है असंख्या कृत्रिम पूंजू योग त्रय नमु भालसे।। ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्य सम्बन्धि कृत्रिमाकृत्रिमासंख्य जिन चैत्येभ्यो
अयं निर्वपामीति स्वाहा।।4।।
ॐ ह्रीं श्री जिन बिम्ब देवेभ्यो नमः स्वाहा। (नव बार पुष्पों से जपे)
जयमाला - दोहा चैत्य महा जिन दर्श से भव बेडी कट जाय। कहुँ महा गुण मालिका भव्य जीव सुखदाय।।
पद्धडी- जय वीतराग सर्वज्ञ देव, भवि जीवों के तारक सुएव। जिनकी छवि है यह चैत्य रूप, जो कृत्याकृत्रिम दोय रूप।।1।।
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