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नाना व्यंजन सार फेणी गूजा पायसी। चैत्य महा जिन सार पूजत पाप मिटे सदा।। ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति जिनचैत्यसमूहेभ्यः क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 5॥
दीपक ज्योति सुधार मोह अन्ध भागे सदा । चैत्य महा जिन सार पूजत पाप मिटे सदा।। ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति जिनचैत्यसमूहेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥6॥
सौरभ हे सुखकार धूप अग्नि में डारिये । चैत्य महा जिन सार पूजत पाप मिटे सदा।। ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति जिनचैत्य समूहेभ्यो अष्टकर्म विनाशनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा॥7॥
आम्र काम्र अनार सेव रसीले लीजिए। चैत्य महा जिन सार पूजत पाप मिटे सदा।। ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति जिनचैत्य समूहेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥
द्रव्य अष्ट प्रकार, लेय चढ़ाउं भावसो । चैत्य महा जिन सार पूजत पाप मिटे सदा।। ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति जिनचैत्य समूहेभ्यो अनघ्य पद प्राप्तये अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥9॥
प्रत्येक पूजा-गीता
इस लोक पातालय में मनहर बने अनादि हे सही। शुभ रत्न कंचन उपल निर्मित चैत्य सुन्दर तिस मही॥ त्रैकाल में मन वचन तन से में नमू नित चरण में।
वसु द्रव्य उत्तम अघ्य पूजूं, होऊं उनकी शरण में।। ऊँ ह्रीं श्री पाताल लोक सम्बन्धि कृत्रिम अकृत्रिम जिन चैत्येभ्यो
अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
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