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इत्याशीर्वादः
श्री जिन चैत्यालय पूजा (अडिल्ल) कृत्याकृत्रिम सुभग जिनालय जानिए। ध्वजा फरुखे स्वर्ण दूति सम मानिए।।
सुन्दर शिखर उतंग मनोहर सोहने। पूजों जिनवर निलय महा मन सोहने।। ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति कृत्रिमाकृत्रिमा जिन चैत्यालय अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति कृत्रिमाकृत्रिमा जिन चैत्यालय अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति कृत्रिमाकृत्रिमा जिनचैत्यालय अत्र मम सन्निहितो भव-भव-वषट्
सन्निधापनम्।
अथाष्टकं (सुन्दरी) कनक झारी जल भर लाइया, जन्म मृत्यु जरा त्रय ढाइया।
मैं यंजु जिन मंदिर चावसो सकल पाप मिटे शुभ भाव सो।। ॐ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति कृत्रिमाकृत्रिम जिनचैत्यालयेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनार
जलं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
दाह भजन चन्दन बावना संघ केशर घिसकर लावना।
मैं यंजु जिन मंदिर चावसो सकल पाप मिटे शुभ भाव सो।। ॐ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति कृत्रिमाकृत्रिम जिन चैत्यालयेभ्यो संसारताप विनाशनाय
चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।2॥
धोय अक्षत थाल भरीजिए पुंज करके अखय पद लीजिए।
मैं यंजु जिन मंदिर चावसो सकल पाप मिटे शुभ भाव सो।। ऊँ ह्रीं श्री त्रैलोक्यवर्ति कृत्रिमाकृत्रिम जिनचैत्यालयेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।।3।।
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