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ॐ ह्रीं जलं स्तंभन जल वर्षादि हेतु भूत मंत्रतंत्रादि प्रतिपादिका द्विशताधिक नवाशीति सहस्र नव लक्ष द्वय कोटि 20989200 पद प्रमाण जलगत् चूलिकायैऽध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।49॥
अल्प समय में बहुयोजन तक गमनागमन सु होवे। मन्त्र तन्त्र सब विद्या इसमें थल गत चुलिक जोवे।। कोटि दोय अरु लाख सुनव हैं सहस नवासी सौहै।
द्वौशत् पद भी पूजू वसु विधि ज्ञान महां गुण मौहे।। ऊँ ह्रीं स्तोक कालेन बहु योजन गमनागमनादि हेत भूत मन्त्र तन्त्र तन्त्रादि निरूपिका पूर्वोक्त
20989200 पद प्रमाण स्थल गत चूलिकायैऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।50॥
इन्द्रजाल माया का करना मन्त्र तन्त्र को जानो। मायागत है नाम चूलिका जिनवर भाषी मानों।। कोटि दोय अरु लाख सुनव हैं सहस नवासी सौहै।
द्वौशत् पद भी पूजू वसु विधि ज्ञान महां गुण मौहे।। ऊँ ह्रीं इन्द्र जलादि मायोत्पादक मन्त्र तन्त्रादि निरूपिका पूर्वोक्त 20989200 पद प्रमाण
मायागत चूलिकायैऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।51॥
गमन गगन में होवे कैसे उपदेश यह भाई। मन्त्र तन्त्र सब विद्या होवे गमन चूलिका गाई।। कोटि दोय अरु लाख सुनव हैं सहस नवासी सौहै।
द्वौशत् पद भी पूजू वसु विधि ज्ञान महां गुण मौहे।। ऊँ ह्रीं गमनागमनादि हेतु भूत मन्त्र तन्त्रादि प्रकाशिका पूर्वोक्त 20989200 पद प्रमाण
आकाश गमन चूलिकायैऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।52॥
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