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सिंह व्याघ्र गज घोटक गाई नर सुर रूप धराई।
मन्त्र तंत्र सब विद्या होई, रूप चुलिका गाई।। कोटि दोय अरु लाख सुनव हैं सहस नवासी सौहै।
द्वौशत् पद भी पूजू वसु विधि ज्ञान महां गुण मौहे।। ॐ ह्रीं सिंह व्याघ्र गज तुरग नर सुरादि रूप विधायक मन्त्र तन्त्रादि उपदेशिका पूर्वोक्त
20989200 पद प्रमाण रूप गत चूलिकायैऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।530
अडिल्ल कोटि दशी उनचास लाख बतलाइया। सहस छियालिस पद महा जिन गाइया।।
मिलकर पांचों चूलिक के पद जानिये। पूजू मन वच काय हर्ष उर ठानिए।। ऊँ ह्रीं षट् चत्वारिंशत सहस्राधिक नव चत्वारिंशत् दश कोटि 100046049 पद प्रमाण
___पंच चूलिकाभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।
ऊँ ह्रीं जिन मुखोत्पन्न द्वादशांग जिनवाणि मातेभ्यो नमः स्वाहा। यहां 108 बार जाप करें)
जयमाला मात जिनवाणी सदा तुम निर्मला सुख दायिनी। जिनदेव पर्वत से निकलकर कुंड गणधर आयनी।
हे शारदे अम्बे सदा अज्ञानता को नाशनी। गात जयमाला अबे हम सुखद हो मुदु भाषनी।।
पद्धडी जय जिनवर वाणी परम रूप, तुम ही भव तारक हो अनूप। जय जिन वदनाम्बुज निकसि देवि, जय गण धर गूंथी हर्ष ठेवी।।1।। यह तीन लोक मण्डन स्वरूप, जय भविजन तारक हो अनूप।
जो श्रद्धे माता हर्ष धार, वह पावे ज्ञानामृत अपार॥2॥
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