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अष्टांग वैद्यक सुगारुडी विद्या, महामंत्र तंत्रादि नाशक कुविद्या।।
लहै प्राणवायं सुशास्त्रं महानतम्, यजूं तेरे कोटि महाश्लोक कान्तम्।। ऊँ ह्रीं अष्टांग वैद्य विद्या गारुडी विद्या मन्त्र प्रमाणं निरूपकं त्रयोदश कोटि 130000000
पद प्रमाण प्राणावायं पूर्वांगायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।45॥
अलंकार छन्दा हे व्याकर्ण जानो, किरिया विशालं कहे तुम प्रमाणो।।
नव कोटि श्लोकं महान्तं सुराजे, महा भक्ति पूजू वसु द्रव्य साजे।। ऊँ ह्रीं छन्दोऽलंकार व्याकरण कला निरूपकं नव कोटि 90000000 पद प्रमाण किरिया
विशाल पूर्वांगायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥46॥
लोक बिन्दुसारं हैं शास्त्रं अपूर्व, निर्वाण कारण कहै सुख स्वरूप।।
पद साडे बारह कोटि सुराजे, महा भक्ति पूजू वसु द्रव्य साजे।। ऊँ ह्रीं निर्वाण पद सुख हेतु भूत सार्द्ध द्वादश कोटि 125000000 पद प्रमाण लोक बिन्दु
सार पूर्वांगायऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।47॥
दोहा कोटि पंचान्नु कहै लक्ष पचासा पांच। पूर्व चतुर्दश श्लोक में जिनवर भाषे सांच।। ॐ ह्रीं चतुर्दश पूर्वांगाय पंचाधि क पंचाशतलक्ष पंचनवति कोटि 955000005 पद
प्रमाणय पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।48॥
12 अंग के भेद में पांच चूलिका के अध्य (जोगीसारा)
वर्षे जल अरु रोके कैसे मन्त्र तन्त्र बतलाती। जलगतिं नामसु चूलिक इसका जिनवाणि कहलाती।। कोटि दोय अरु लाख सुनव हैं सहस नवासी सौहै। द्वौशत् पद भी पूजू वसु विधि ज्ञान महां गुण मौहे।।
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