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बन्ध उदय अरु उपशम होंहे, कर्म उदीरण निर्जर सौहै।
कर्म प्रवाद कहै इन स्वरूपं, पद कोटि अस्सी सुलक्षं अनुपम।। ॐ ह्रीं कर्म बन्धोदयोपशमोदीरणां निर्जरा कथकमशीति लक्षाधिक कोटि 1800000 पद
प्रमाण कर्म प्रवाद पूर्वांगायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥41॥ लहै प्रत्याख्यानं सू पूर्व ही जानो, कहै द्रव्य पर्यय स्वरूपं ही मानो।।
अहो लाख चोरासी श्लोकं सुराजे, महा भक्ति पूजूं वसु द्रव्य साजे।। ऊँ ह्रीं द्रव्य पर्ययरूप प्रव्याख्यान निश्चलन कथकं चतुरशीति लक्ष 8400000 पद प्रमाण
प्रत्याख्यान पूर्वांगायऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।42॥
सुविद्यानुवादं हे शास्त्रं विशिष्टं, शतं पांच विद्या महा गुण गरिष्टं।।
लघु सप्त सेकड कहै सुस्वरूपं, पद एक कोटि दशं लक्ष रूपं।। ऊँ ह्रीं पंचशत महाविद्या सप्तशत क्षुद्रविद्या अष्टांग महाविद्या निमित्तानि प्ररूपयनदश लक्षाधिक कोटि 11000000 पद प्रमाण विद्यानुवाद पूर्वांगायऽध्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।431
कल्याण पूर्व महासुख स्वरूपं, कहै तीर्थ चक्री के पुण्यं अनुपम्।।
पद कोटि छब्बीस जिसमें सुराजे, महाभक्ति पूजू वसु द्रव्य साजे।। ऊँ ह्रीं तीर्थंकर चक्रवर्ति बल भद्र वासु देवेन्द्रादि पुण्य व्यावर्णकं षडविंशति कोटि 260000000 पद प्रमाण कल्याण प्रवाद पूर्वांगायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥44॥
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