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चौबीस देवा हैं बलदेव स्वामी, वसुदेव चक्री जगत में सु नामी।।
वीर्यानुवादा कहे इन चरित्रं, पद लक्ष सत्तर है पूजू विचित्र।। ऊँ ह्रीं बल देव वासुदेव चक्रवर्ति शक्र तीर्थकरादि बल वर्णकं सप्तति लक्ष 7000000 पद
प्रमाण वीर्यानुवाद पूर्वांगायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।35॥
नाम अस्तिनास्ति प्रर्वाद पूर्व जो है, अस्तित्व नास्तित्व भंग कहै है।।
पद लक्ष षष्ठही है इसमें सुराजे, महा भक्ति पूजू वसु द्रव्य साजे।। ऊँ ह्रीं जीवादि वस्त्वास्ति नास्तिचेति प्रकथकं षष्ठी लक्ष 6000000 पद प्रमाण मस्ति
नास्ति प्रवाद पूर्वांगायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।36।।
ज्ञानोत्पत्ति निमित्त अधिकारी, कहे इन स्वरूपं सुज्ञान भंडारी।।
हीन एक कोटि महा श्लोक राजे, महा भक्ति पूजू वसु द्रव्य साजे।। ऊँ ह्रीं अष्ट ज्ञान तदुप्पति कारण तदाधार पुरुष प्ररूपकं मेकौनकोटि 9999999 पद प्रमाण
ज्ञान प्रवाद पूर्वांगायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।37॥
स्थान वर्णद्वि इन्द्रियादि सु प्राणी, वचनगुप्ति संस्कार भाषे सुज्ञानी।।
हे नाम सत्य प्रवाद पूर्व राजे, पद एक कोटि सु छेही विराजे।। ऊँ ह्रीं वर्ण स्थान तदाधार द्वीन्द्रयादि जन्तुवचन गुप्ति संस्कार प्ररूपकं षडधिक कोटि 10000006 पद प्रमाण सत्य प्रवाद पूर्वांगायऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।38॥
आत्म प्रवाद सु पूर्व ही जानो, है जिसमें आत्म स्वरूपं बखानो।।
पद कोटि छत्तीस उसमें सुराजे, महा भक्ति पूजू वसु द्रव्य साजे।। ऊँ ह्रीं ज्ञानाध्यात्म कर्तृत्वादि युतात्म स्वरूप निरूपकं षटत्रिंशत कोटि 360000000 पद
प्रमाण आत्म प्रवाद पूर्वांगायऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।400
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