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यति शिक्षा दीक्षा सही गण पोषक बतलाय। नाम महाकल्पं कहा गण धर कहत सुखाय।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित शिक्षा दीक्षा गण पोषणात्म संस्कार भावनोत्तमार्थ भेदेन षटकाल प्रतिबद्ध यतिनामा चरणं प्रतिपादय महाकल्प शास्त्राय
अयं निर्वपामीति स्वाहा॥11॥
स्वर्गो में उत्पत्ति है पुण्य महा सुखदाय। पुण्डरीक इस शास्त्र में जिनवर भाषा आय।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित भवन वास्यादि देवेषु उत्पत्ति कारण तम प्रकृति प्रति पादक
पुण्डरीक शास्त्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।12॥
देवसुरी पदवी मिले पुण्य प्रकाशन हार। शास्त्र महा पुण्डरीक कहै गणधर कहत विचार।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित देवांगना पद प्राप्ति हेतु पुण्य प्रकाशन महापुण्डरीक शास्त्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।13॥
पुरुष उमर अरु शक्ति मम सूक्ष्म थूल जु दोष। शक्ति देख दे दण्ड का वर्णन करत अदोष।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित स्थूल सूक्ष्म दोष प्रायश्चित पुरुष वयः सत्वाद्यपेक्षया प्ररुपयन्ति
मशीति का शास्त्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।14।
गीता-पूर्णायं अशीति सामयिक थुति अरु वंदना प्रति क्रमण है। विनय अरु कृति कर्म दश वैकालिक का कथन है।।
अष्ट उत्तरध्ययन का व्यवहार कल्पाकल्प है।
वृहत कल्पं पुण्डरीकं वृहद पुंडरीक जल्प है।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित अंग बाह्य चतुर्दश प्रकीर्णन 2503380 श्लोकेषु 15 अक्षर
पद प्रमाण अंगेभ्यो पूर्णाध्यं निर्वामीति स्वाहा।
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