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अंग 11 अंग अर्घं (सुन्दीर)
महायति चारित जिसमें कहा, कहत आचारांग शुभ लहा सहस अष्टादश पद मानिए अघ्यं पूजूं वसु विधि ठानिए।
ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित अष्टादश सहस 18000 पद प्रमाण सहित आचारांगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 15॥
ज्ञान वनया छेदुपथापना कहत सूत्र कृतांग शुभ घना।
सहस छत्तिसो पद शोभना करत पूजा दुख नहीं होवना।।
ऊँ ह्रीं श्री षट् त्रिंशत्सहस्र 3600 पद प्रमाण सूत्र कृतांगाऽयं निर्वपामीति स्वाहा।। 16।।
द्रव्य षट् आदिक व्याख्यान है होय थाना अंग प्रधान है। सहस बैय्यालिस पद होत है पूज तिनको दोसव धोक हैं ।। ॐ ह्रीं श्री द्वाचत्वारिंशद सहस्र 42000 पद प्रमाण स्थानांगायऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥17॥
लोकत्रयसु प्ररूपण हैं जहां, नाम समवायांगसु है तहां। सहस चौसठ अधिक सुलक्षहै पद जिनेश्वर भाषे दक्ष है।
ऊँ ह्रीं श्री चतुषष्ठ्याधिक सहस्र लक्षैक 164000 पद प्रमाण सहित समवायांगायऽयं निर्वपामीति स्वाहा।। 18 ।
अस्ति नास्ति सुसप्तहि भंग है कहत व्याख्या प्रज्ञप्ति अंग है। सहस अट्ठाबिस दो लाख है पद जिनेश्वर की शुभ भाख है।
ॐ ह्रीं श्री गणधर कृत प्रश्न, षष्टी सहस्रप्रति पादक अष्टाविंशती सहस्रधिक द्विलक्ष 228000 पद प्रमाण व्याख्या प्रज्ञप्ति अंगाय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥19॥
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