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________________ ले जलादि सब अर्घ बनाय, स्वर्ण थाल भर तुम्हें चढ़ाय। पूजू आय, जय जिनवाणी पूजू आय।।। जिनवाणी मम माता आप, पूजै मिटे महा सन्तान। पूजू आय, जय जिनवाणी पूजू आय।। ॐ ह्रीं श्री जिन मुखोत्पन्न द्वादशांग श्रुत देवीभ्यो अनध्य पद प्राप्तेय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥9॥ अथ प्रत्येक अर्घ अंगबाह्य चतुर्दश प्रकीर्णक दोहा सामायिक के काल सब मुनिगण के बतलाय। शास्त्र महा जो है सही सामायिक कहलाय।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित सामायिक विस्तार कथकं शास्त्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥ चौबीसों जिनराज की, थुति होवे जिस माहीं। नाम शास्त्र है संस्तवन, जिनवर मुख निकसाही। ॐ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित वृषभादि नाम चतुर त्रिंशदतिशय प्रातिहार्य लक्षण वरणादि व्यावर्णकं चतुर विंशति स्तवन नाम शास्त्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।2। चौबीसों जिनराज में स्तवन एक का होय। नाम बंदना कहत है शास्त्र महा सुख सोय॥ ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित अरहन्तादि नाम एकैकशोऽभिवन्दना विधान बोधित वन्दना नाम शास्त्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।3।। रात दिवस जा दोष हो निराकरण जिस माहीं। प्रतिक्रमण वह शास्त्र है, नाम प्रथित सुखदाई।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्त देव कथित दिवस रात्री पक्ष चातुर्मास संवत्सरेर्यां पथिकोत्मार्थ प्रभव सप्त प्रतिक्रमण प्ररूपकं प्रतिक्रमण शास्त्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥ 1024
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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