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द्रव्य क्षेत्र अरु काल की सीमा लेकर रूपी द्रव्य। जानत अवधि ज्ञान यही है श्रद्धो प्राणी भव्य।। वसु विधि द्रव्य मनोहर लेकर कंचन थाल भराई।
पूजों मन वच काय सु वश कर ज्ञान होय सुखदाई।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित अवधि ज्ञानेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।
मन में पर के रूपी द्रव्य होय वह जिस काल। जाते मन पर्यय सुज्ञानी नमो सदा शुभ भाल।। वसु विधि द्रव्य मनोहर लेकर कंचन थाल भराई।
पूजों मन वच काय सु वश कर ज्ञान होय सुखदाई।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित मन पर्यय ज्ञानेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
तीन लोक के द्रव्य सुपर्यय जाने युगपद ज्ञानी। नाम सुकेवल ज्ञान उसी का होय नहीं अभिमानी।।
वसु विधि द्रव्य मनोहर लेकर कंचन थाल भराई।
पूजों मन वच काय सु वश कर ज्ञान होय सुखदाई।। ॐ ह्रीं श्री जिनवर कथित केवल ज्ञानेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
13 प्रकार चरित्र अर्घ पंच महाव्रत पंच समीति गुप्तित्रय शुभ कारे। होय त्रयोदश चरित्र ये ही मुनिगण इनको धारें।। वसु विधि द्रव्य मनोहर लेकर कंचन थाल भराई। पूजों मन वच काय सु वश कर ज्ञान होय सुखदाई।। ऊँ ह्रीं श्री त्रयोदश चारित्रेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
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