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प्राप्त कर ज्ञान गुरु राय को छिपावते। करत पाप दुष्ट जीव नर्क उपजावते।।
छुपात ना नाम गुरु ऊंच गति पावते। होत अनिन्हवाचार ही स्वभावते।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित अनिन्हवाचार विनयेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।8।
पूर्णाध्यं-गीता शंकादि पंच विंशति है दोष समकित जानिए। होत नहीं सम्यकत्व शुद्ध रहत इनके मानिए।। छोड़कर इन दोष मल को शुद्ध समकित कीजिए।
नीरादि उत्तम द्रव्य लेकर शुद्ध समकित पूजिए।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथितसर्व मलदोष रहित शुद्ध सम्यक्त्व मार्गेभ्योऽध्यं निर्वपामीति
स्वाहा।
पांच ज्ञानों के अध्यं - जोगीरासा इन्द्रिय अरु मन से सदा ही जाने पुद्गल रूप। होय वह मति ज्ञानसु उत्तम जिनवर कहत सरूप।। वसु विधि द्रव्य मनोहर लेकर कंचन थाल भराई।
पूजों मन वच काय सु वश कर ज्ञान होय सुखदाई।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर कथित मति ज्ञानेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
वीरज अन्तराय सुश्रुत का होय क्षयोपशम भाई। जान वह सब द्रव्य सुज्ञानी अक्षर अनक्षर गाई।। वसु विधि द्रव्य मनोहर लेकर कंचन थाल भराई।
पूजों मन वच काय सु वश कर ज्ञान होय सुखदाई।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर कथित श्रुत ज्ञानेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।
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