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नाराच होय भव्य जीव जो भाय सोल भावना। भ्रमत नहीं अथिर भव तीर्थ पद पावना।
हे यही देव जिनराज की देशना। अर्घ ले पूजते पाप सब नाशना।। ऊँ ह्रीं श्री जिनवर देव कथित षोडस कारण भावना जिन धर्मेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।
ऊँ ह्रीं श्री स्याद्वाद अहिंसा परमो धर्मेभ्यो नमः स्वाहा।।
(यहां 9 बार पष्पों से जाप्य करें।)
जयमाला - दोहा जैन धर्म प्रसाद से दुष्ट जीव तर जाय। गाऊं महिमा धर्म की सुगत पंथ लगाय॥
पद्धडी जय धर्म अहिंसा सार जान, है सब धर्मों में अति महान। निस कारण बन्धु सु धर्म एक, भविध्यावे दुरित न रहे नेक।।
जो जीव फिरे संसार माहि, उनको तारक है अन्य नाहि। जय स्याद्वाद इक धर्म सार, जो ध्यावे मुक्ति तुरत धार। जय रत्न त्रय दश धर्म रूप, जय अनेकान्त महिमा अनूप। सब भेद अहिंसा धर्म जान, अरहन्त देव की खिरतवान।
जय रामचन्द्र हनुमान वीर, धर धर्म हुए वे मुक्ति वीर। जय पंच शतक मुनि धानिपेल, नहीं डिगे आप प्रिय धर्म सेल। जय गंगा में पुनि दिये डाल, चित्तधार धर्म रह गुण विशाल।
जय तीर्थंकर चक्री महेश, वृषधार गये मुक्ति हमेशा आचार्य मुनि शुचि धर्म धार, हो गये भवी दधि आप पार। सति मैना सुनदर एक नार, पति कुष्ट नशाया धर्म धार।
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