________________
प्रभूता मुझ में है बड़ी करता मद दुखदाय मदकरता दर्शन मलिन कहत जिनेश्वर राय ।।
ऊँ ह्रीं प्रभुता मद मलदोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।16।।
गीता-पूर्णाध्य
जनक भूप सु जजनी भ्राता नृप मेरे बलकार है। रूप सुन्दर ज्ञान बहु विध धन मेरा हितकार है।।
शक्ति प्रभु में है बडी तप करत हूं सुखकार है।
प्रभुता अनुपम मुझमें इस विध करत मद दुखकार है।
ऊँ ह्रीं अष्ट मद मलदोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्यो पूर्णाऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
3 मूढ़ता-गीता
सरित न्हाये नमत पीपल ढ़ेर बालु पूजते। पर्वतों से पात करते अग्निमाहीं हूजते ।।
कहत जिनवर लोक मूढ़ा, दोष समकित दायजी। संसार में बहु दिन रुलावे मोक्ष सुख नशायजी।।
ॐ ह्रीं लोक मूढ़ता मलदोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जो रागी द्वेषी देवता को पूजते हर्षायकर । प्राप्त होगा वर मुझे यह आश मन में लायकर।। कहत जिनवर लोक मूढ़ा, दोष समकित दायजी।
संसार में बहुदिन रुलावे मोक्ष सुख नशायजी।।
ऊँ ह्रीं देव मूढ़ता मलदोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
1013