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जो है सग्रन्थियुक्त हिंसा डूबते संसार में। अरु डुबोवे बहु जनों को घूमते वेकार में।। सत्कार करता इन जनों का मूढ़ पाखंड होय है।
ये हि समकित दोष ठाने कर्म मल न धोय हैं।। ऊँ ह्रीं पाखण्डी मूढ़ता मलदोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
6 अनायतन-गीता देवता के हैं न लक्षण देवता जो बन रहे। दोष अष्टादश जिन्हों में राग द्वेषी हों रहें।। देब कु कहते इन्हों का देव गण धर राय हैं।
नमन करते प्राणी इनको दोष दर्शन लाय हैं।। ऊँ ह्रीं कुदेव अनायतन मल दोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्ष पंच न वश में जिसके जो सग्रन्थि है बना। जटा धारें भस्म सारे बह गुरु भव में सना।। होत ऐसे गुरु मिथ्या देव जिनवर भासिया।
नमन करते प्राणी इनको दोष दर्शन आंखिया।। ऊँ ह्रीं कुगुरु अनायतन मल दोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
एकान्त से दोषि जो हैं वह मांस खाना है लिखा। आदि अन्त न एक जिसका कपिल आदिक का भखा।
होत मिथ्या शास्त्र ऐसे देव जिनवर भासिया।
नमन करते प्राणी इनको दोष दर्शन आखिया।। ऊँ ह्रीं कुशास्त्र अनायतन मल दोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
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