________________
मनमें नामद लावते मामा नृप बन जाय।
मदकरता दर्शन मलिन कहत जिनेश्वर राय।। ऊँ ह्रीं मातुल मद मलदोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।10॥
रूप नहीं थिर रहत है क्यों फिर मदमन ल्याय।
मदकरता दर्शन मलिन कहत जिनेश्वर राय।। ऊँ ह्रीं रूप मद मलदोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।11।
करत नहीं मद ज्ञान का नरकों में ले जाय।
मदकरता दर्शन मलिन कहत जिनेश्वर राय।। ऊँ ह्रीं ज्ञानापद मद मलदोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।12।
अथिर रूप इस संग का क्यों कर गर्व कराय।
मदकरता दर्शन मलिन कहत जिनेश्वर राय।। ऊँ ह्रीं धन मद मलदोष रहित सम्यग्दर्शन जिन मार्गेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।।13।
नाशवन्त तनु शक्ति है मद उरमे न वसाय।
मदकरता दर्शन मलिन कहत जिनेश्वर राय।। ऊँ ह्रीं शक्ति मद मलदोष रहित सम्यग्दर्शन मार्गेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।14।
तप का मद करत है व्यर्थ तपस्या जाय।
मदकरता दर्शन मलित कहत जिनेश्वर राय।। ऊँ ह्रीं तप मद मलदोष रहित सम्यग्दर्शन जिन मार्गेभ्योऽध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।15।।
1012