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संघर्षों में उपसर्गो में, तुमने समता का भाव धरा | आदर्श तुम्हारा अमृत-बन, भक्तों के जीवन में बिखरा || मैं अष्ट-द्रव्य से पूजा का, शुभ थाल सजा कर लाया हूँ |
जो पदवी तुमने पाई है, मैं भी उस पर ललचाया हूँ || ओं ह्रीं श्रीअहिच्छत्र पार्श्वनाथजिनेन्द्र अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।
पंचकल्याणक- अर्ध्यावली
(अर्ध नरेंद्र छंद) बैशाख-कृष्ण-द्वितीया के दिन, तुम वामा के उर में आये|
श्री अश्वसेन-नृप के घर में, आनंद भरे मंगल छाये || ओं ह्रीं वैशाख-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।१।
जब पौष-कृष्ण-एकादशि को, धरती पर नया प्रसून खिला | भूले भटके भ्रमते जग को, आत्मोन्नति का आलोक मिला ||
ओं ह्रीं पौषकृष्ण-एकादश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।
एकादशि- पौष-कृष्ण के दिन, तुमने संसार अथिर पाया | दीक्षा लेकर आध्यात्मिक पथ, तुमने तप द्वारा अपनाया ||
ओं ह्रीं पौषकृष्ण -एकादशीदिने तपोमंगल-मंडिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।३।
अहिच्छत्र-धरा पर जी भर कर, की क्रूर कमठ ने मनमानी | तब कृष्ण-चैत्र-चतुर्थी को, पद प्राप्त किया केवल ज्ञानी || यह वंदनीय हो गई धरा, दश भव का बैरी पछताया |
देवों ने जय जयकारों से, सारा भूमंडल गुंजाया || ओं ह्रीं चैत्रकृष्ण-चतुर्थीदिवसे श्रीअहिच्छत्रातीर्थे ज्ञानसाम्राज्य-प्राप्ताय
श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।।
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