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पंचकल्याणक-अर्ध्यावली
(पाइता छन्द) सित-कातिक-छ? अमंदा, गरभागम आनंद-कंदा।
शचि सेय शिवा-पद आई, हम पूजत मन-वच-काई।। ओं ह्रीं कार्तिकशक्ल-षष्ठयां गर्भमंगल-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।
सित-सावन-छट्ठ अमंदा, जनमे त्रिभुवन के चंदा।
पितु-समुद्र महासुख पायो, हम पूजत विघन नशायो।। ओं ह्रीं श्रावणशुक्ल-षष्ठयां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।२।
तजि राजमती व्रत लीनो, सित-सावन-छट्ठ प्रवीनो।
शिव-नारि तबै हरषाई, हम पूजें पद सिर नाई।। ओं ह्रीं श्रावणशुक्ल-षष्ठयां तपोमंगल-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।३।
सित-आश्विन-एकम चूरे, चारों-घाती अति-कूरे।
लहि केवल महिमा सारा, हम पूजें अष्ट-प्रकारा।। ओं ह्रीं आश्विनशुक्ल-प्रतिपदायां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।४।
सित-षाढ़-सप्तमी चूरे, चारों अघातिया करे।
शिव ऊर्जयंत तें पाई, हम पूजें ध्यान लगाई।। ओं ह्रीं आषाढशुक्ल-सप्तम्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।५।
जयमाला
(दोहा) श्याम-छवी तनु चाप-दश, उन्नत गुन-निधि-धाम। शंख-चिह्न पद में निरखि, पुनि-पुनि करूं प्रणाम।1।
(पद्धरी छन्द-१५ मात्रा लघ्वन्त) जै जै जै नेमि जिनिंद चंद, पितु-समुद देन आनंद-कंद। शिव-मात कुमुद-मन मोद-दाय, भवि-वृंद चकोर सुखी कराय।2।
जय देव अपूरव मारतंड, तुम कीन ब्रह्मसुत सहस-खंड। शिव-तिय-मुख-जलज विकाशनेश, नहिं रहो सृष्टि में तम अशेष।3।
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