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पुंडरीक सुर-द्रुम-करनादिक, सुमन सुगंधित लाय। दर्प क मनमथ-भंजनकारन, जजू चरन लवलाय।।
दाता मोक्ष के, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के।। ओं ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय कामबाण- विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।
घेवर बावर खाजे साजे, ताजे तुरत मँगाय। क्षुधा-वेदनी नाश-करन को, जजूं चरन उमगाय।।
दाता मोक्ष के, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के ।। ओं ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।
कनक-दीप नवनीत पूरकर, उज्ज्वल-जोति जगाय। तिमिर-मोह-नाशक तुमको लखि, जजू चरन हुलसाय।।
दाता मोक्ष के, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के । ओं ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।
दशविध-गंध मँगाय मनोहर, गुंजत अलि-गन आय।
दशों बंध जारन के कारन, खेऊ तुम ढिग लाय।।
दाता मोक्ष के, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के।। ओं ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धपं निर्वपामीति स्वाहा ।।
सुरस वरन रसना मनभावन, पावन-फल सु मँगाय। मोक्ष-महाफल कारन पूजूं, हे जिनवर! तुम पाय।।
दाता मोक्ष के, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के ।। ओं ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलपद-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।
जल-फल आदि साज शुचि लीने, आठों दरब मिलाय। अष्ठम-छिति के राज करन को, जजूं अंग-वसु नाय।।
दाता मोक्ष के, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के।। ओं ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।।
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