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भवि-भीत-कोक कीनों अशोक, शिव-मग दरशायो शर्म-थोक। जै जै जै जै तुम गुनगंभीर, तुम आगम-निपुन पुनीत धीर।4। तुम केवल-जोति विराजमान, जै जै जै जै करुना-निधान। तुम समवसरन में तत्त्वभेद, दरशायो जा तें नशत खेद।5। तित तुमको हरि आनंद धार, पूजत भगती-जुत बहु-प्रकार। पुनि गद्य-पद्यमय सुजस गाय, जै बल अनंत-गुनवंतराय।6।
जय शिव-शंकर-ब्रह्मा-महेश, जय बुद्ध-विधाता-विष्णुवेष। जय कुमति-मतंगन को मृगेंद्र, जय मदन-ध्वांत को रवि जिनेंद्र।7।
जय कृपासिंधु अविरुद्ध बुद्ध, जय रिद्धि-सिद्धि-दाता प्रबुद्ध। जय जग-जन-मन-रंजन महान्, जय भवसागर-महँ सुष्टु-यान।8।
तुव भगति करें ते धन्य जीव, ते पावें दिव शिव-पद सदीव। तुमरो गुन देव विविध प्रकार, गावत नित किन्नर की जु नार।9।
वर भगति-माँहिं लवलीन होय, नाचें ता-थेइ थेइ थेइ बहोय। तुम करुणासागर सृष्टिपाल, अब मो को वेगि करो निहाल।10।
मैं दुःख अनंत वसु-करम-जोग, भोगे सदीव नहिं और रोग। तुम को जग में जान्यो दयाल, हो वीतराग गुन-रतन-माल।11।
ता तें शरना अब गही आय, प्रभु करो वेगि मेरी सहाय। यह विघन-करम मम खंड-खंड, मनवाँछित-कारज मंड-मंड।12।
संसार-कष्ट चकचूर चूर, सहजानंद मम उर पूर पूर। निज-पर-प्रकाश बुधि देइ-देई, तजि के विलंब सुधि लेइ लेई।13। ___ हम जाँचत हैं यह बार-बार, भवसागर तें मो तार-तार। नहिं सह्यो जात यह जगत्-दुःख, ता तें विनवू हे सुगुन-मुक्ख।14।
(घत्ता छन्द) श्रीनेमिकुमारं जित-मद-मारं, शीलागारं, सुखकारं।
भव-भय-हरतारं, शिव-करतारं, दातारं धर्माधारं।15। ओं ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(मालिनी-१५ वर्ण) सुख धन जस सिद्धि पुत्र-पौत्रादि वृद्धी।।
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