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(णमोकार मंत्र का नौ बार जाप २७ श्वासोच्छवासों में करें)
(namākāra mantra' kā nau bāra jāpa 27 śvāsõcchvāsām mēr
karem)
सिद्ध-पूजा (संस्कृत) Siddh-Pooja (Sanskrit)
पूजाएँ दो प्रकार से की जा सकती हैं। 'द्रव्यपूजा' द्रव्याष्टक बोलते हुए क्रमश: द्रव्य चढ़ाते हुए करते हैं। जबकि 'भावपूजा' आरम्भ-परिग्रह त्यागने वाले श्रावक, मुनिगण तथा बिना सामग्री के पूजन करने के इच्छुक मन के भावों से 'भावाष्टक' बोलकर करते हैं। सिद्धों की पूजा के दोनों ही प्रकार के अष्टक संस्कृत में भी है तथा हिन्दी भाषा में भी। हिन्दी भावाष्टक-युक्त एक संपूर्ण पूजा अलग से भी है, पूजक अपनी भावना के अनुसार कोई भी
पूजन कर सकते हैं।
Pija'em di prakāra se kija sakati haim. 'Dravyapuja' dravyāstaka
bõlatē hu'ē kramasa: Dravya carhātē hu'ē karatē haim. Jabaki 'bhāvapūjā' ārambha-parigraha tyāganē vālē śrāvaka, munigaņa tathā binā sāmagri kē pūjana karanē kē icchuka mana kē bhāvām sē
'bhāvāștaka' bõlakara karatē haiņ| Siddhāṁ kī pūjā kē dönöm hi prakāra kē aştaka sanskrta mēs bhi hai tathā hindi bhāṣā mēr bhī. Hindī bhāvāştaka-yukta ēka sampūrņa pūjā alaga sē bhi hai, pūjaka
apanī bhāvanā kē anusāra kõ'i bhī pūjana kara sakatē haim
द्रव्याष्टक ऊर्ध्वाधोरयुतं सबिन्दु सपरं ब्रह्म-स्वरावेष्टितम् | वर्गापूरित-दिग्गताम्बुज-दलं तत्संधि-तत्वान्वितम् ||
अंतःपत्र-तटेष्वनाहत-युतं ह्रींकार-संवेष्टितम् |
देवं ध्यायति यः स मुक्तिसुभगो वैरीभ-कण्ठीरवः ||१|| ओं ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन्! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (आह्वाननम्)
ओं ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन्! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठः! ठ:! (स्थापनम्) ओं ह्रीं श्री सिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन्! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (सन्निधिकरणम्)
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