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________________ श्री पार्श्वनाथ जिनपूजन-1 (रचयिता - बख्तावरलाल) नीर गंध अक्षतान् पुष्प चरु लीजिये । दीप धूप श्रीफलादि अर्घ तैं जजीजिये ॥ पार्शवनाथ देव सेव आपकी करूँ सदा । दीजिये निवास मोक्ष भूलिए नहीं कदा ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्शवनाथजिनेन्द्राय अनर्घपद-प्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । श्री पार्श्वनाथ पूजन-2 (रचयिता - पुष्पेन्दु) पथ की प्रत्येक विषमता को, मैं समता से स्वीकार करूं। जीवन-विकास के प्रिय-पथ की, बाधाओं का परिहार करूँ॥ मैं अष्ट-कर्म-आवरणों का, प्रभुवर आतंक हटाने को। वसु-द्रव्य संजोकर लाया हूँ, चरणों में नाथ चढ़ाने को। ॐ ह्रीं श्रीपाश्वनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा॥ श्री अहिच्छत्र-पाश्वनाथ- जिन-पूजा (रचयिता - कल्याण कुमार शशि) संघर्षों में उपसर्गों में तुमने, समता का भाव धरा। आदर्श तुम्हारा अमृत-बन, भक्तों के जीवन में बिखरा॥ मैं अष्टद्रव्य से पूजा का, शुभ-थाल सजा कर लाया हूँ। जो पदवी तुमने पाई है, मैं भी उस पर ललचाया हूँ।। ॐ ह्रीं श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। 76
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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