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________________ श्रीमहावीर जिन-पूजा (पावागिरि, ऊन) (रचयिता - पं0 बाबूलाल फणीश) पय चंदन अक्षत पुष्प नैवेद्य का, थाल सजाकर मैं लाया हूँ। दीप धूप फल मिश्रित करके, अर्घ बनाकर मैं लाया हूँ।। अब अनर्घपद प्राप्ति हेतु शाश्वत-सुख पाने आया हूँ। श्री स्वर्णभद्रादि चार मुनिवर को अर्घ्य चढ़ाने आया हूँ।।।। ऊँ ह्रीं ॐ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्तेभ्यः स्वर्णभद्रादि-चतुर-मुनिश्वरेभ्यः एवं शान्ति-कुन्थु-अर- महावीरजिनेन्द्रेभ्यः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्रीमहावीर जिन-पूजा (चान्दन गांव- श्री महावीर जी) (रचयिता - श्री पूरनमल) जल गंध सु अक्षत पुष्प चरुवर जोर करौं। ले दीप धूप फल मेलि आगे अर्घ करौं। चांदनपुर के महावीर, तोरी छवि प्यारी। प्रभु भव-आताप निवार, तुम पद बलिहारी।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरस्वामिने अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।। श्रीमहावीर जिन-पूजा (अहिंसा-स्थल, नई दिल्ली) तुम हो चिरंतन नित्य ही प्रभु परमपद में वास है। है जन्म-मरण-जरा ने जिससे हृदय में उल्लास है।। उस परमपद की प्राप्ति को निज रूप मैं उर में धरूँ। प्रभु अष्ट द्रव्यों से समन्वित अर्घ से पूजा करूँ।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 77
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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