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________________ श्रीपार्श्वनाथ जिन-पूजा ( रचयिता - श्री राजमल जी ) अष्ट कर्म क्षय-हेतु अष्ट द्रव्यों का अर्घ्य बनाऊँ मैं। अविनाशी अविकारी अष्टम - वसुधापति बन जाऊँ मैं।। चिन्तामणि प्रभु पार्श्वनाथ की पूजन कर हर्षाऊँ मैं। संकटहारी मंगलकारी श्री जिनवर-गुण गाऊँ मैं।। ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीपार्श्वनाथ जिन-पूजा (आर्यिका ज्ञानमती माता जी ) आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की । जिनकी भक्ति से प्रकटित हो, ज्योति आतम - ज्ञान की|| || वंदे जिनवरम्-4॥ जल गंधादिक अघ्य सजाकर, जिनवर चरण चढ़ा करके । रत्नत्रय अनमोल प्राप्त कर, बसूँ मोक्ष में जा करके।। इसी हेतु त्रिभुवन जनता भी, भक्ति करे भगवान् की। जिनकी भक्ति से प्रकटित हो, ज्योति आतम-ज्ञान की|| || वंदे जिनवरम् - 4॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 75
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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