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________________ श्रीपार्श्वनाथ जिन-पूजा (अहिच्छत्र) (रचयिता - राजमल जी) शुद्ध भाव के अर्घ बिना मैं पाप पुण्य में अटकाया। निज अनर्घ-पदवी पाने को शरण आपकी मैं आया।। अहिक्षेत्र-प्रभु पार्श्वनाथ के दर्शन करके हर्षाया। तपो-भूमि कैवल्य-भूमि को वन्दन कर अति सुख पाया।। । ॐ ह्रीं श्रीअहिक्षेत्रपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनध्यपद-प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। श्रीपार्श्वनाथ जिन-पूजा (जटवाड़ा) (रचयिता - आचार्य देवनन्दि मुनि) जलगंधाक्षत पुष्प चरूवर दीप धूप और फल। पार्श्वचरण में अध्य चढ़ाकर जीवन बने सफल।। ___ संकटहर श्री पार्श्वप्रभुजी जैनगिरीवासी। अद्भुत महिमा जगकल्याणी अष्टकर्मनासी।।।। ऊँ ह्रीं श्री 1008 संकटहरपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। श्रीपार्श्वनाथ जिन-पूजा (कलिकुण्ड) (अडिल्ल छन्द ) जल गंध सुधारा तंदुल प्यारा पुष्प चरू ले दीप भली। दश धूपसुरंगी फल ले अभंगी करो अर्घ उर हर्ष रली।। कलिकुण्ड-सुयंत्रं पढ़ कर मंत्रं ध्यावत जे भविजन ज्ञानी। सब विपति विनाश, सुख परकाशै, होवै मंगल सुखदानी।। ।। ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहँ कलिकुण्ड-दण्ड श्रीपार्श्वनाथाय धरणेन्द्र-पद्मावती-सेविताय अतुलबलवीर्य-पराक्रममाय सर्वविघ्न-विनाशनाय हाल्व्यूं भल्यूं म्म्ल्यूं म्न॒यूं म्ल्यूं झम्ल्यूं स्म्ल्यूं खम्ल्यूं अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। 74
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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