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श्री वासुपूज्य जिन पूजन
स्थापना
गीता छंद जय वासुपूज्य जिनेश पद में, वंदना शत बार है। जिसने लिया है नाम श्रद्धा, से हआ भव पार है।। जबसे प्रभु तव दर्श पाया, एक अतिशय हो गया। कोई नहीं भाता मुझे अब, मन विरागी हो गया।। भव से बचाकर नाथ अपने, सिद्धमहल बुलाइये।
या भक्त भव्यों के हृदय में, आइये प्रभु आइये।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्र !अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्र !अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण
गीता छंद शुचि पंद्रह का नीर लेकर, आपको अर्पण करूँ। मिथ्यात्व मल मेरा नशा दो, हे प्रभु अर्चन करूँ।।
श्री वासुपूज्य शतेन्द्र पूजित, मैं करूँ आराधना।
संसार से घबरा गया हूँ, बन सकूँ परमातमा ।।1।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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