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आठों गुणो से युक्त सिद्ध आठ रूप हो।।8।।
क्षायिकी नव लब्धियों से नव स्वरूप हो। दश धर्म के धारी जिनेश दश स्वरूप हो।।9।।
ग्यारह प्रतिमाओ का उपदेश दे दिया। भक्तों ने ग्यारवें जिनेश को नमन किया।।10।
जिनराज दिव्यदेशना सौभाग्य से मिली। पावनघड़ी है आज हृदय की कली खिली ॥11॥
कोई नहीं जिनेश है इस जग में हमारा। चारों गति में देख लिया तू ही सहारा।।12॥
दोहा
अगणितगुण गण के धनी, मुक्तिरमा के नाथ।
मेरा भी कल्याण हो, हूँ त्रियोग नत माथ।।13।। ऊँ हीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता
श्री श्रेयांस जिनेश्वर, श्री परमेश्वर, भव-भव का संताप हरो। निज पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण’ करो।।
॥ इत्याशीर्वादः॥
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