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भाव ताप को चंदन जिनेश्वर, मेट ना सकता कभी। प्रभु आ गया हूँ मैं भटक कर, पद शरण देना अभी।।
श्री वासुपूज्य शतेन्द्र पूजित, मैं करूँ आराधना।
संसार से घबरा गया हूँ, बन सकूँ परमातमा ॥2॥ ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
तंदुल धवल के पुंज पावन, शुभ्र चरणों में धरूँ।
मैं चार विध आराधना से, चार गति के दुःख हरूँ।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ पुष्प नंदन वन सुगंधित, चरण में अर्पण करूँ। दुष्काम का संसताप हरने, शीश चरणों में धरूँ।। श्री वासुपूज्य शतेन्द्र पूजित, मैं करूँ आराधना।
संसार से घबरा गया हूँ, बन सकूँ परमातमा।।4।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
यह सरस पावन सौम्य रस युत, चरु चरण युग में धरूँ। जिनराज भव व्याधि मिटा दो, नमन तव पद में करूँ।।
श्री वासुपूज्य शतेन्द्र पूजित, मैं करूँ आराधना।
संसार से घबरा गया हूँ, बन सकूँ परमातमा।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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