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पद पूजित शत इंद्र नमस्ते, सुमति-सुमति दातार नमस्ते। जन्म नमस्ते, मोक्ष नमस्ते, जिन जीवन है धन्य नमस्ते ॥8॥ मोक्ष कल्पतरु नाथ नमस्ते, कामधेनु चिन्मणी नमस्ते । ज्ञान सिंधु उत्तीर्ण नमस्ते, 'विद्यासागर पूर्ण' नमस्ते ॥9॥
दोहा
दुर्बुद्धि कुमति तनँ, धरूँ सुमति सुखकार। परमातम से मिलन हो, अर्पण गुणमणि हार ॥10॥
ऊँ हीं अहँ श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय नमो नमः।
ऊँ हीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णर्य निर्वपामीति स्वाहा।
घत्ता श्री सुमति जिनंदा, आनंद कंदा, भव-भव का संताप हरो। निज पूज रचाऊँ, ध्यान लगाऊँ, 'विद्यासागर पूर्ण’ करो।।
॥ इत्याशीर्वादः॥
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