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श्री पद्मप्रभ जिन पूजन
स्थापना
ज्ञानोदय छंद जय-जयपद्मजिनेश्वर मेरे, पावन पद्माकर सुखधाम । भव दुखहर्ता, मंगलकर्ता, छठवें तीर्थंकर अभिराम।। हरो अमंगल प्रभु अनादि का, भाव यही लेकर आया।
मन मंदिर है मेरा सूना, आह्वान करने आया।।
वीतरागसर्वज्ञहितैषी, पद्मजिनेश्वर प्रभु महेश। पूजा को स्वीकारों स्वामी, दिखला दो मुक्ति का देश।। ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
द्रव्यार्पण
ज्ञानोदय छंद जन्म मरण की इस ज्वाला में, अब तक मैं जलता आया। सिंधु नीर से बुझी न ज्वाला, अतः भक्ति का जल लाया।।
श्री पद्माकर पद्म जिनेशा, तव दर्शन कर हर्षाया।
आत्म शांति पाने को भगवन्, शरण तिहारी हूँ आया।।1।। ऊँ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय जन्म जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
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